बंदउँ गुरु पद पदुम परागा ।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥
जनकसुता जग जननि जानकी ।
अतिसय प्रिय करुनानिधान की ॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ ।
जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक ।
चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥
राजिवनयन धरें धनु सायक ।
भगत बिपति भंजन सुखदायक ॥
प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना ।
जासु नेम ब्रत जाइ न बरना ॥
बंदउँ लछिमन पद जल जाता ।
सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥
रिपुसूदन पद कमल नमामी ।
सूर सुसील भरत अनुगामी ॥
महाबीर बिनवउँ हनुमाना ।
राम जासु जस आप बखाना ॥
गुरु पितु मातु महेस भवानी ।
प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥
करन चहउँ रघुपति गुन गाहा ।
लघु मति मोरि चरित अवगाहा ॥
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं ।
तातें बिनय करउँ सब पाहीं ॥
बंदउँ नाम राम रघुबर को ।
हेतु कृसानु भानु हिमकर को ॥
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि ।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि ॥
राम चरन रति जो चह अथवा पद निर्बान ।
भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान ॥
॥ सीताराम जी महाराज की जय ॥
॥ श्री हनुमान जी महाराज की जय॥
॥ श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की जय॥