गंगा दशहरा
शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व
सनातन धर्म में गंगा दशहरा का विशेष महत्व है। यह पर्व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 1 जून को पड़ रही है। स्कन्दपुराण में इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा नाम के स्मरण मात्र से ही सभी पापों का अंत हो जाता है।
“गंगा दशहरा शुभ मुहूर्त और पूजा विधि”
गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 37 मिनट तक है। इस दौरान आप स्नान-ध्यान और दान कर सकते हैं। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी होता है। लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार श्रद्धालु गंगा स्नान नहीं कर सकेंगे। ऐसे में गंगा दशहरा के दिन नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें। इसके बाद सबसे पहले सूर्यदेव को अर्घ्य दें। फिर ‘ऊं श्री गंगे नमः’ मंत्र का उच्चारण करते हुए मां गंगे का स्मरण करके अर्घ्य दें। इसके बाद गंगा मैया की पूजा-आराधना करें। इस दिन निराश्रितों एवं ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें। यह अत्यंत शुभ होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से गंगा मैया की कृपा से श्रद्धालुओं के जीवन में कभी किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आती।
“गंगा दशहरा का ऐसा है महत्व”
कथा अनुसार जिस दिन मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं, उस दिन एक बहुत ही अनूठा और भाग्यशाली मुहूर्त था। उस दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि और वार बुधवार था, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर योग, आनंद योग, कन्या राशि में चंद्रमा और वृषभ में सूर्य। इस प्रकार उस दिन दस शुभ योग बन रहे थे। माना जाता है कि इन सभी दस शुभ योगों के प्रभाव से गंगा दशहरा के पर्व में जो भी व्यक्ति गंगा में स्नान करता है l
“गंगा दशहरा पर इन पापों का होता है अंत”
मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से दस तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।
इसमें पराई स्त्री के साथ समागम, बिना आज्ञा या जबरन किसी की वस्तु लेना, कटुवचन का प्रयोग, हिंसा, किसी की शिकायत करना, असत्य वचन बोलना, असंबद्ध प्रलाप, दूसरे की संपत्ति हड़पना या हड़पने की इच्छा, दूसरों को हानि पहुंचाना या ऐसी इच्छा रखना और बेवजह की बातों में शामिल होना। इसलिए धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि अगर अपनी गलतियों का अहसास हो और प्रभु से माफी मांगनी हो तो गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान कर दान-पुण्य करें।
गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान से कटेंगें दस पाप दुनिया की सबसे पवित्र नदियों में से एक है गंगा। गंगा के निर्मल जल पर लगातार हुए शोधों से भी गंगा विज्ञान की हर कसौटी पर भी खरी उतरी। विज्ञान भी मानता है कि गंगाजल में कीटाणुओं को मारने की क्षमता होती है जिस कारण इसका जल हमेशा पवित्र रहता है। यह सत्य भी विश्वव्यापी है कि गंगा नदी में एक डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं। हिन्दू धर्म में तो गंगा को देवी माँ का दर्जा दिया गया है। यह माना जाता है कि जब माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ तो वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2020 में गंगा दशहरा का यह पर्व 1 जून, सोमवार को बड़ी धूमधाम से देशभर में मनाया जाएगा।
“करें मां गंगा की पूजा”
इस दिन यदि संभव हो तो गंगा मैया के दर्शन कर उसके पवित्र जल में स्नान करें अन्यथा स्वच्छ जल में ही मां गंगा को स्मरण करते हुए स्नान करें यदि गंगाजल हो तो थोड़ा पानी में मिला लें। स्नानादि के पश्चात मां गंगा की प्रतिमा की पूजा करें। इनके साथ राजा भागीरथ और हिमालय देव की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। गंगा पूजा के समय प्रभु शिव की आराधना विशेष रूप से करनी चाहिए क्योंकि भगवान शिव ने ही गंगा जी के वेग को अपनी जटाओं पर धारण किया। पुराणों के अनुसार राजा भागीरथ ने माँ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए बहुत तपस्या की थी। भागीरथ के तप से प्रसन्न होकर माँ गंगा ने भागीरथ की प्रार्थना स्वीकार की किन्तु गंगा मैया ने भागीरथ से कहा – “पृथ्वी पर अवतरण के समय मेरे वेग को रोकने वाला कोई चाहिए अन्यथा मैं धरातल को फाड़ कर रसातल में चली जाऊँगी और ऐसे में पृथ्वी वासी अपने पाप कैसे धो पाएंगे।”
राजा भागीरथ ने माँ गंगा की बात सुनकर प्रभु शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रभु शिव ने गंगा माँ को अपने जटाओं में धारण किया। पृथ्वी पर अवतरण से पूर्व माँ गंगा ब्रहमदेव के कमंडल में विराजमान थीं। अतः गंगा मैया पृथ्वी पर स्वर्ग की पवित्रता साथ लेकर आईं थीं। इस पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को माँ गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगने फल की प्राप्ति होती है।
“गंगा मैया का मंत्र”
‘नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:’
‘भावार्थ’- हे भगवती, दसपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को नमन।।
‘ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा’
‘भावार्थ’- हे भगवती गंगे! मुझे बार-बार मिल और पवित्र कर।।
ll धन्यवाद ll
॥ गंगा दशहरा के पावन पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ॥