तुलसीदास जी की मान्यता है कि निर्गुण ब्रह्म, राम भक्त के प्रेम के कारण मनुष्य शरीर धारण कर लौकिक पुरुष के अनुरूप विभिन्न भावों का प्रदर्शन करते हैं। नाटक में एक नट अर्थात् अभिनेता अनेक पात्रों का अभिनय करते हुए उनके अनुरूप वेषभूषा पहन लेता है तथा अनेक पात्रों अर्थात् चरित्रों का अभिनय करता है। जिस प्रकार उस नट के नाटक में अनेक पात्रों के अनुरूप वेष धारण करने तथा उनका अभिनय करने से वह पात्र नहीं हो जाता, नट ही रहता है उसी प्रकार रामचरितमानस में भगवान राम ने लौकिक मनुष्य के अनुरूप जो विविध लीलाएँ की हैं उससे भगवान राम वही नहीं हो जाते, राम निर्गुण ब्रह्म ही हैं। तुलसीदास जी ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा है कि उनकी इस लीला के रहस्य को बुद्धिहीन लोग नहीं समझ पाते तथा मोहमुग्ध होकर लीला रूप को ही वास्तविकता समझ लेते हैं। तुलसीदास जी के अनुरूप राम के वास्तविक एवं तात्त्विक रूप को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
“श्री रामचरितमानस के सिद्ध (मन्त्र)…”
मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान शंकर ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है, इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।
“अष्टांग हवन सामग्री”
‘सामग्री’ | ‘मात्रा’ |
रोली | 10 ग्राम |
पीला सिंदूर | 10 ग्राम |
पीला अष्टगंध चंदन | 10 ग्राम |
लाल चन्दन | 10 ग्राम |
सफ़ेद चन्दन | 10 ग्राम |
लाल सिंदूर | 10 ग्राम |
हल्दी (पिसी) | 50 ग्राम |
हल्दी (समूची) | 50 ग्राम |
सुपाड़ी (समूची बड़ी) | 100 ग्राम |
लौंग | 10 ग्राम |
इलायची | 10 ग्राम |
सर्वौषधि | 1 डिब्बी |
सप्तमृत्तिका | 1 डिब्बी |
सप्तधान्य | 100 ग्राम |
पीली सरसों | 50 ग्राम |
जनेऊ | 5 पीस |
इत्र बड़ी | 1 शीशी |
गरी का गोला (सूखा) | 2 पीस |
पानी वाला नारियल | 1 पीस |
जटादार सूखा नारियल | 1 पीस |
अक्षत (चावल) | 1 किलो |
धूपबत्ती | 1 पैकेट |
रुई की बत्ती (गोल/लंबी) | 1-1 पै. |
देशी घी | 500 ग्राम |
चमेली का तेल | 1 शीशी |
कपूर | 20 ग्राम |
कलावा | 5 पीस |
चुनरी (लाल / पीली) | 1/1 पीस |
बताशा | 500 ग्राम |
अबीर गुलाल (लाल, पीला, हरा, गुलाबी) अलग-अलग | 10 ग्राम |
बुक्का (अभ्रक) | 10 ग्राम |
गंगाजल | 1 शीशी |
गुलाबजल | 1 शीशी |
लाल वस्त्र | 1 मी. |
पीला वस्त्र | 1 मी. |
झंडा हनुमान जी का | 1 पीस |
कुश (पवित्री) | 4 पीस |
लकड़ी की चौकी | 1 पीस |
रुद्राक्ष की माला | 1 पीस |
तुलसी की माला | 1 पीस |
चन्दन की माला (लाल) | 1 पीस |
दोना (छोटा – बड़ा) | 1-1 पीस |
मिट्टी का कलश (बड़ा) | 1 पीस |
मिट्टी का प्याला | 8 पीस |
मिट्टी की दियाली | 8 पीस |
हवन कुण्ड | 1 पीस |
माचिस | 1 पीस |
आम की लकड़ी | 2 किलो |
नवग्रह समिधा | 1 पैकेट |
हवन सामग्री | 1 किलो |
तिल | 100 ग्राम |
जौ | 100 ग्राम |
गुड़ | 100 ग्राम |
कमलगट्टा | 100 ग्राम |
गुग्गुल | 100 ग्राम |
धूप लकड़ी | 100 ग्राम |
सुगंध बाला | 50 ग्राम |
सुगंध कोकिला | 50 ग्राम |
नागरमोथा | 50 ग्राम |
जटामांसी | 50 ग्राम |
अगर-तगर | 100 ग्राम |
इंद्र जौ | 50 ग्राम |
बेलगुदा | 100 ग्राम |
सतावर | 50 ग्राम |
गुर्च | 50 ग्राम |
जावित्री | 25 ग्राम |
भोजपत्र | 1 पैकेट |
कस्तूरी | 1 डिब्बी |
केसर | 1 डिब्बी |
खैर की लकड़ी | 4 पीस |
चीनी | 100 ग्राम |
शहद | 50 ग्राम |
पंचमेवा | 200 ग्राम |
पंचरत्न व पंचधातु | 1 डिब्बी |
मिष्ठान | 500 ग्राम |
पान के पत्ते (समूचे) | 11 पीस |
आम के पत्ते | 2 डंठल |
ऋतु फल | 5 प्रकार के |
दूब घास | 100 ग्राम |
फूल, हार (गुलाब) की | 2 माला |
फूल, हार (गेंदे) की | 2 माला |
गुलाब/गेंदा का खुला हुआ फूल | 500 ग्राम |
तुलसी का पौधा | 1 पीस |
तुलसी की पत्ती | 5 पीस |
राम दरबार की प्रतिमा | 1 पीस |
शिव शंकर भगवान की प्रतिमा | 1 पीस |
रामचरितमानस ग्रंथ | 1 पीस |
रेहल (ग्रन्थ को रखने हेतु) | 1 पीस |
जानने योग्य बातें
जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करने हेतु बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) 108 बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ बोल देना चाहिये। प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से 108 आहुति के लिये एक सेर (80 तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिस्ता, बादाम, किशमिश, अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध 4 आने भर ही डालने से काम चल जाएगा।
हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता 108 की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये। मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं। सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार 108 आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा। एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम 108 बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहे तो कर सकता है। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
जब भी कोई मुश्किल हो रामचरितमानस की ये चौपाई जरूर पढ़ें –
बालकाण्ड
स्नान से पुण्य-लाभ के लिये :-
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन, मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु, साधु समाज प्रयाग ॥” (दोहा -2)
यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये :-
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं, रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर, सोभा अति अनुराग॥” (दोहा -11)
खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए :-
“गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू॥” (चौपाई -12.4)
सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये/भूत भगाने के लिये:-
“प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन ।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥” (सोरठा-17)
श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये:-
“जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥” (चौपाई -17.4)
विचार शुद्ध करने के लिये:-
“ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥”(चौपाई -17.4)
विपत्ति-नाश के लिये:-
“राजीवनयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुखदायक ॥ ”(चौपाई -17.5)
विष नाश के लिये:-
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥” (चौपाई -18.4)
संकट से मुक्ति के लिये:-
“जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥” (चौपाई-21.3)
श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये:-
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू । अपने बस करि राखे रामू॥” (चौपाई -25.3)
शिक्षा की सफ़लता के लिये:-
“मोरि सुधारिहि सो सब भाँती । जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती ॥” (चौपाई -27.2)
दरिद्रता मिटाने के लिये:-
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद घन दारिद दवारि के ॥” (चौपाई -31.4)
विघ्न शांति के लिये:-
“सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही । राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही ॥”(चौपाई -38.3)
संकट-नाश के लिये:-
“जौं प्रभु दीनदयालु कहावा । आरति हरन बेद जसु गावा ॥” (चौपाई-58.3)
परीक्षा की सफ़लता के लिये:-
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी । कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥” (चौपाई -104.3)
संशय-निवृत्ति के लिये:-
“रामकथा सुंदर कर तारी । संसय बिहग उड़ावनिहारी॥” (चौपाई -113.1)
कातर की रक्षा के लिये:-
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ । एहि अवसर सहाय सोइ होऊ॥” (चौपाई -131.1)
सहज स्वरुप दर्शन के लिये:-
“भगत बछल प्रभु कृपानिधाना । बिस्वबास प्रगटे भगवाना॥” (चौपाई -145.4)
श्री सीताराम के दर्शन के लिये:-
“नील सरोरुह नील मनि, नील नीरधर स्याम ।
लाजहिं तन सोभा निरखि, कोटि कोटि सत काम ॥ (दोहा -146)
जीविका प्राप्ति के लिये:-
“बिस्व भरन पोषन कर जोई । ताकर नाम भरत अस होई ॥” (चौपाई -196.4)
नजर झाड़ने के लिये:-
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी । निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी ॥” (चौपाई -197.3)
पुत्र प्राप्ति के लिये:-
“प्रेम मगन कौसल्या, निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता, बालचरित कर गान ॥” (दोहा-200)
विद्या प्राप्ति के लिये:-
“गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल बिद्या सब आई ॥” (चौपाई -203.2)
श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये:-
“केहरि कटि पट पीत धर, सुषमा सील निधान ।
देखि भानुकुल भूषनहि, बिसरा सखिन्ह अपान॥” (दोहा-233)
आकर्षण के लिये:-
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ॥” (चौपाई -258.3)
वार्तालाप में सफ़लता के लिये:-
“तेहिं अवसर सुनि सिवधनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥” (चौपाई -267.1)
ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये:-
“अनुचित कहि सब लोग पुकारे । रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे॥” (चौपाई -275.4)
चिन्ता की समाप्ति के लिये:-
“जय रघुबंस बनज बन भानू । गहन दनुज कुल दहन कृसानू ॥” (चौपाई -284.1)
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये:-
“जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं । जद्यपि ताहि कामना नाहीं ॥
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ । धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ ॥” (चौपाई -293.1.2)
कुशल-क्षेम के लिये:-
“भुवन चारिदस भरा उछाहू । जनकसुता रघुबीर बिआहू ॥” (चौपाई -295.2)
विवाह के लिये:-
“तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै ।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै ॥” (छन्द-324.2)
उत्सव होने के लिये:-
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं ।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु॥” (सोरठा-361)
अयोध्याकाण्ड
खेद नाश के लिये:-
“जब तें रामु ब्याहि घर आए । नित नव मंगल मोद बधाए ॥” (चौपाई-1)
निन्दा की निवृत्ति के लिये:-
राम कृपाँ अवरेब सुधारी । बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी ॥ (चौपाई-316.2)
कठिन क्लेश नाश के लिये:-
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू । महामोह निसि दलन दिनेसू ॥” (चौपाई-325.3)
विरक्ति के लिये:-
“भरत चरित करि नेमु, तुलसी जो सादर सुनहिं ।
सीय राम पद पेमु अवसि, होइ भव रस बिरति॥” (सोरठा-326)
किष्किन्धाकाण्ड
भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये:-
“राम चरन दृढ़ प्रीति करि, बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ ते, गिरत न जानइ नाग ॥” (दोहा-10)
ज्ञान-प्राप्ति के लिये:-
“छिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम सरीरा ॥” (दोहा-10.2)
मुकदमा जीतने के लिये:-
“पवन तनय बल पवन समाना । बुधि बिबेक बिग्यान निधाना ॥” (दोहा- 29.2)
मनोरथ-सिद्धि के लिये:-
“भव भेषज रघुनाथ जसु, सुनहिं जे नर अरु नारि ।
तिन्ह कर सकल मनोरथ, सिद्ध करहिं त्रिसिरारि ॥” (दोहा- 30 क)
सुन्दरकाण्ड
यात्रा सफ़ल होने के लिये:-
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा ॥” (चौपाई-4.1)
शत्रु को मित्र बनाने के लिये:-
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई । गोपद सिंधु अनल सितलाई ॥” (चौपाई-4.1)
संकट दूर करने के लिए :-
“दीन दयाल बिरिदु संभारी । हरहु नाथ सम संकट भारी ॥” (चौपाई-26.2)
अकाल मृत्यु निवारण के लिये:-
“नाम पाहरू दिवस निसि, ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित, जाहिं प्रान केहिं बाट ॥” (दोहा -30)
लंकाकाण्ड
मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये:-
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे ॥” (चौपाई-46.3)
शत्रु के सामने जाने के लिये:-
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा॥” (चौपाई-67.1)
मोक्ष-प्राप्ति के लिये:-
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। कालसर्प जनु चले सपच्छा॥” (चौपाई-67.2)
उत्तरकाण्ड
सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये:-
“जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं । सुख संपति नाना बिधि पावहिं ॥” (चौपाई -14.2)
सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये:-
“सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई । लहहिं भगति गति संपति नई ॥” (चौपाई -14.3)
शत्रुतानाश के लिये:-
“बयरु न कर काहू सन कोई । राम प्रताप बिषमता खोई ॥” (चौपाई -19.4)
विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये:-
“दैहिक दैविक भौतिक तापा । राम राज नहिं काहुहि ब्यापा ॥” (चौपाई -20.1)
प्रेम बढ़ाने के लिये:-
“सब नर करहिं परस्पर प्रीती । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ॥” (चौपाई -20.1)
भक्ति की प्राप्ति के लिये:-
“भगत कल्पतरू प्रनत हित, कृपा सिंधु सुखधाम ।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु, देहु दया करि राम ॥” (दोहा-84ख)
॥ ॐ श्री रामाय नम: ॥
॥ पूज्य श्री जितेन्द्री जी महाराज ॥
~ मानस अमृत परिवार ~
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