श्री रामचरितमानस अखण्ड पाठ
- विधिपूर्वक अखण्ड रामायण पाठ के पूजन मे लगभग 1 घंटे व मण्डली द्वारा संगीतमय अखण्ड रामायण पाठ संपन्न करने में लगभग 24 से 25 घंटे का समय लगता है l
"मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की कथा"
श्रीराम की कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में अवतरित हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूर्ण रूप से याद रही। उन्होंने वह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार आरंभ हुआ।
श्री राम एक आदर्श पुत्र थे। पिता की आज्ञा उनके लिये सर्वोपरि थी। पति के रूप में श्री राम ने सदैव एकपत्नीव्रत धर्म का पालन किया। राजा के रूप में प्रजा के हित के लिये स्वयं के हित को देय समझते रहे। विलक्षण व्यक्तित्व था उनका। वे अत्यन्त वीर्यवान, तेजस्वी, विद्वान, धैर्यशील, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, सुंदर, पराक्रमी, दुष्टों का दमन करने वाले, युद्ध एवं नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता एवं प्रतिभा सम्पन्न थे। सीता जी का पतिव्रत भी महान था। सारे वैभव और ऐश्वर्य को ठुकरा कर वे पति के साथ वन चली गईं। रामायण भातृ-प्रेम का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। जहाँ बड़े भाई के प्रेम में लिप्त लक्ष्मण श्री राम के साथ वन चले जाते हैं, वहीं भरत अयोध्या की राज गद्दी पर, बड़े भाई का अधिकार होने के कारण, स्वयं न बैठ कर श्री राम की पादुका को प्रतिष्ठित कर देते हैं।
- कौशल्या एक आदर्श माता थीं। अपने पुत्र राम पर कैकेयी के द्वारा किये गये अन्याय को भूला कर वे कैकेयी के पुत्र भरत पर उतनी ही ममता रखती थीं, जितनी कि अपने पुत्र राम पर।
- हनुमान एक आदर्श भक्त थे, वे राम की सेवा के लिये अनुचर के समान सदैव तत्पर रहते थे। शक्तिबाण से मूर्छित लक्ष्मण को उनकी सेवा के कारण ही प्राणदान प्राप्त हुआ था।
- रावण के चरित्र से सीख मिलती है, कि अहंकार नाश का कारण होता है।
रामायण के चरित्रों से सीख लेकर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बना सकता है । इसीलिए प्रत्येक भक्त को अपने जीवन काल में रामचरितमानस का पाठ अवश्य करवाना चाहिए जो कि इस प्रकार से हो सकता है।
""रामचरितमानस अखण्ड रामायण पाठ में समय व पूजन विधि""
“श्री रामचरितमानस”(अखण्ड रामायण) पाठ में लगभग 24 घण्टे का समय लगता है। पूजन हेतु सर्वप्रथम वेदी की रचना करके गौरी गणेश एवं वरुण देवता, नवग्रह देवता तथा प्रधान देवता श्री सीताराम दरबार की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है। तत्पश्चात् गणेश गौरी एवं सर्व स्थापित मूर्तियों एवं प्रतिमाओं का आवाहन कर षोडशोपचार द्वारा वैदिक पूजन होता है। इसके बाद सभी ब्राह्मण बंधु, परिवार बंधु, तथा इष्ट मित्र सभी मिलकर रामचरितमानस पाठ को आरंभ करते हैं, जो कि संपुट लगाकर किया जाता है। रामचरितमानस पाठ समाप्त होने पर हवन, आरती की जाती है। भगवान का प्रसाद आचार्य द्वारा ग्रहण किए जाने के उपरांत सभी भक्तजन को वितरित करते हैं। प्रसाद प्राप्त कर सभी को भगवान का स्मरण करते हुए अपने निज निवास को जाना चाहिए, जिससे सभी कष्ट समाप्त हों तथा सभी कार्य परिपूर्ण होते रहें।
धन्यवाद
प्रेम से बोलिए राघव प्यारे की जय।
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