दुर्गा शतचंडी/नवचण्डी पाठ एवं पूजन

  • विधिपूर्वक दुर्गा शतचंडी/नवचण्डी पाठ एवं पूजन करवाने में लगभग 3 दिन व अधिकतम 5 दिन का समय लगता हैं l

दुर्गा सप्तशती पाठ : शतचण्डी विधि द्वारा...

सावधानी : इस विधि को करने वाले साधक कृपया ध्यान रखें कि शक्ति की आराधना में किसी भी प्रकार की कमी न रहने पाए। 

मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए। 

शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ माना जाता है। इस अनुष्ठान विधि में नौ कुंवारी कन्याओं का पूजन करना चाहिए जो 2 से 10 वर्ष तक की हो। इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए।

इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या, यश हेतु क्षत्रिय कन्या, धन हेतु वैश्य तथा पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा ‘मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।’ इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए। वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें। 

शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्य देवताओं का वैदिक पूजन होता है। 

"शतचंडी महायज्ञ"

माँ दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है। दुर्गा जी को प्रसन्न करने हेतु जिस यज्ञ विधि को पूर्ण किया जाता है उसे निरंतर रूप से यज्ञ कहा जाता है। नवचंडी यज्ञ को सनातन धर्म में अत्यंत शक्तिशाली कहा गया है। इस यज्ञ से बिगड़ी हुई योजनाओं की स्थिति को सही किया जा सकता है तथा सौभाग्य इस विधि के बाद आपका साथ देने का लगता है। इस यज्ञ के बाद मनुष्य खुद को एक आनंदित वातावरण में महसूस कर सकता है। वेदों में इसकी महिमा के बारे में यहां तक ​​कहा गया है कि निरंतर संघर्ष यज्ञ के बाद आपके दुश्मन आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इस यज्ञ को गणेशजी, भगवान शिव, नवग्रह एवं नवदुर्गा (देवी) को समर्पित करने से मनुष्य जीवन धन्य हो जाता है।

"निरंतर चलने वाली विधि"

यज्ञ विद्वान ब्राह्मण द्वारा किया जाता है क्योंकि इसमें 700 श्लोकों का पाठ किया जाता है जो एक योग्य ब्राह्मण ही कर सकता है। नव वर्ष यज्ञ एक अतिरिक्त, अत्यंत शक्तिशाली और बड़ा यज्ञ है जिससे देवी माँ की अपार कृपा होती है। सनातन इतिहास में यह वर्णित है कि पुराने समय में देवता एवं राक्षस इस यज्ञ का प्रयोग पराक्रम तथा ऊर्जावान होने के लिए निरंतर प्रयोग करते थे।

यज्ञ करने हेतु सबसे पहले हवन कुंड का पंचभूत संस्कार किया जाता है । इसके लिए कुश के अग्रभाग से वेदी को स्वच्छ किया जाता है। इसके बाद गाय के गोबर व स्वच्छ जल से कुंड का लेपन किया जाता है। तत्पश्चात वेदी के मध्य बायें से तीन खड़ी रेखायें दक्षिण से उत्तर की ओर अलग-अलग खिंची जाती हैं। फिर रेखाओं को क्रमानुसार अनामिका उंगली से कुछ मिट्टी हवन कुंड से बाहर फेंकें। अब दाहिने हाथ से शुद्ध जल वेदी पर छिड़कें। इस प्रकार पंचभूत संस्कार करने के बाद आगे की क्रिया शुरू करते हुए अग्नि प्रज्जवलित कर अग्निदेव का पूजन करें। इसके बाद भगवान गणेश सहित अन्य ईष्ट देवों की पूजा कर यज्ञ आरंभ करें l

धन्यवाद

प्रेम से बोलो जगत जननी मां दुर्गा की जय।।

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