महामृत्युंजय जप एवं पूजन
- 1 आचार्य द्वारा विधिपूर्वक महामृत्युंजय जप एवं पूजन सम्पन्न करवाने में लगभग 30 दिन का समय लगता हैं।
- 5 व 7 आचार्यो द्वारा विधिपूर्वक महामृत्युंजय जप एवं पूजन सम्पन्न करवाने में लगभग 3 दिन व अधिकतम 7 दिन का समय लगता हैं।
"महामृत्युंजय मंत्र का जाप"
(विशेष परिस्थितियों में करवाएं महामृत्युंजय जाप)
महामृत्युंजय मंत्र जपने से न केवल अकाल मृत्यु टलती है, अपितु आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप करने उपरांत वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत-सी बाधाएं दूर होती हैं। अत: इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र से शिवलिंग का अभिषेक करने से जीवन में कभी सेहत की समस्या नहीं आती।
(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर तथा दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग हो।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित हो।
(3) जमीन-जायदाद के बंटवारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।
तो महामृत्युंजय मंत्र का जप करना लाभकारी होता है।
"विशेष फलदाई है महामृत्युंजय मंत्र, किन्तु ज़रूरी हैं कुछ सावधानियां...."
महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, परंतु इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां रखना आवश्यक है, जिससे इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके तथा किसी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।
अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- जो भी मंत्र जपना हो उसका उच्चारण शुद्धता से करें।
- एक निश्चित संख्या में जप करें।
"महामृत्युंजय मन्त्र का अर्थ"
पुराणों तथा शास्त्रों में असाध्य रोगों से मुक्ति एवं अकाल मृत्यु से बचने हेतु महामृत्युंजय मंत्र के जप का विशेष उल्लेख मिलता है। महामृत्युंजय मन्त्र भगवान शिव को प्रसन्न करने का मन्त्र है l
“महामृत्युंजय मन्त्र”
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
“महामृत्युंजय मन्त्र का अर्थ”
हम अपने तीसरे नेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो दो नेत्रों के पीछे है। यह हमें आपको महसूस करने की शक्ति प्रदान करती है, तथा इसके द्वारा हम जीवन में खुश, संतुष्ट और शांत महसूस करते हैं l हम जानते हैं, कि अमरता प्राप्त करना संभव नहीं है, किन्तु भगवान शिव अपनी शक्तियों से हमारी मृत्यु के समय को कुछ समय के लिए बढ़ा सकते है l
"कब हुयी महामृत्युंजय जाप की उत्पत्ति"
यह मंत्र ऋग्वेद (मंडल 7, हिम 59) में व्याखित है। यह मंत्र ऋषि वशिष्ठ को समर्पित है, जो उर्वशी एवं मित्रवरुण के पुत्र थे l एक बार ऋषि मृकण्डु तथा उनकी पत्नी मरुद्मति ने पुत्र की प्राप्ति हेतु तपस्या की और भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें दो विकल्प दिए। जिसके अनुसार उन्हें एक अल्पायु बुद्धिमान पुत्र अथवा दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र में से एक का चयन करना था। ऋषि मृकण्डु ने पहले विकल्प का चयन किया और उन्हें मार्कंडेय नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका जीवन काल मात्र 16 वर्ष था। जब मार्कंडेय को अपने भाग्य के बारे में पता चला, तो उसने भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी। यम खुद उसे ले जाने आये किन्तु मार्कंडेय ने अपनी बाहों को शिवलिंग के चारों ओर लपेटकर शिव जी से दया याचना की। तत्पश्चात् जब यम ने मार्कण्डेय को उस शिवलिंग से दूर करने का प्रयास किया, तो भगवान शिव क्रोधित हो गए। तथा शिवलिंग से प्रकट हो दण्ड स्वरूप भोलेनाथ ने यम को मार दिया। इसके उपरांत भगवान शिव ने यम को इस शर्त पर पुनर्जीवित किया, कि वह बालक(मार्कण्डेय) हमेशा के लिए जीवित रहेगा। यहीं से इस मंत्र की उत्पति हुई। यही कारण है, कि भगवान शिव को कालांतक कहा जाता है तथा इस मंत्र को केवल ऋषि मार्कंडेय को ज्ञात गुप्त मंत्र माना जाता है l
"महामृत्युंजय मन्त्र के लाभ"
यह मंत्र व्यक्ति को ना केवल मृत्यु भय से मुक्ति दिला सकता है, अपितु उसकी अटल मृत्यु को भी टाल सकता है।
इस मंत्र का ‘सवा लाख’ बार निरंतर जाप करवाने से किसी भी बीमारी तथा अनिष्टकारी ग्रहों के दुष्प्रभाव को खत्म किया जा सकता है।
इस मंत्र के जप से आत्मा के कर्म शुद्ध हो जाते हैं, तथा आयु एवं यश की प्राप्ति होती है। साथ ही यह मानसिक, भावनात्मक तथा शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है l
धन्यवाद
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