सत्यनारायण कथा एवं पूजन

"सत्यनारायण भगवान की कथा"

सत्य नारायण व्रत कथा आधिकारिक नाम (सत्यनारायण) व्रत कथा है।

भगवान सत्यनारायण की कथा हिंदू सनातन धर्म में आस्था का प्रतीक है। यह कथा मानव जीवन में सत्य बोलने के लिए हम सभी को प्रेरित करती है। सत्यनारायण व्रत कथा हिंदू परंपरा का धार्मिक व्रत है। सत्यनारायण भगवान की कथा इस लोक में प्रचलित है। हिंदू धर्मावली के बीच भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा है।

कुछ लोग मनोकामना पूर्ण होने पर तथा कुछ अन्य नियमित रूप से इस कथा का आयोजन करते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, व्रत-पूजा एवं कथा। सत्यनारायण व्रतकथा स्कंदपुराण के रेवाखंड से संकलित की गई है।

"सत्य नारायण व्रत कथा व पूजन का महत्व"

सभी दु:खों से मुक्त, कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदाई होती है। मनोवांछित फल पाने की कोई आरम्भ‌‍ तिथि भी नहीं है। सत्य को नारायण (विष्णु) के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है, कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, जिसमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इस कथा के मूल पाठ के पाठांतर में लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध हैं, जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें से एक है- संकल्प को भूलना और दूसरा है- प्रसाद का अपमान। व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है, कि सत्य का पालन न करने पर किस प्रकार की परेशानियां आती हैं। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा ना करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं, अपितु दंड स्वरूप संपति तथा बंधु-बांधवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य है। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में योग्य आचार्य द्वारा वाचन करवाया जाता है। तथा अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि-विधान से करने का प्रयास किया जाता है l

"भगवान सत्यनारायण पूजा की विधि"

सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका के प्रथम अध्याय में यह बताया गया है, कि सत्यनारायण भगवान की पूजा कैसे की जाए। संक्षेप में यह विधि निम्नलिखित है-

जो व्यक्ति सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं, उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए। पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र कर वहां वेदी बनाएं, तथा उस पर पूजा की चौकी रखें। इस चौकी के चारों पायों के पास केले के वृक्ष अथवा पत्ते लगाएं। इस चौकी पर शालिग्राम, ठाकुर जी या श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति पूजन करें। तत्पश्चात् इन्द्रादि दशदिक्पाल तथा क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण तथा राधा कृष्ण की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी, शालिग्राम व सत्यनारायण की पूजा करें। इसके बाद मां लक्ष्मी तथा अंत में महादेव एवं ब्रह्मा जी की पूजा करें।

भगवान सत्यनारायण की पूजा में केले के पत्ते, फल, पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुमकुम, गाय का गोबर, दूर्वा इत्यादि सामग्री की आवश्यकता होती है, जिनसे भगवान की पूजा होती है। पूजन के लिए दूध, दही, मधु, गंगाजल, तुलसी पत्ता तथा मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, जिससे भगवान श्री शालिग्राम जी को स्नान कराया जाता है, जो उनको अति प्रिय है। प्रसाद के रूप में फल तथा मिष्ठान के अलावा आटे को भूनकर सवाई लगाकर जिसमे चीनी मिश्रित कर चूर्ण बनावे, जिसे पंजीरी‌ कहते है, उसका भी भोग लगता है l

पूजन के उपरांत सभी देवी-देवताओं की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें। आचार्य जी को दक्षिणा एवं वस्त्र दें तथा भोजन करवाएं। भोजन के पश्चात आचार्य से आशीर्वाद लेकर आप स्वयं भोजन करें।

धन्यवाद

प्रेम से बोलिए सत्यनारायण भगवान की जय।

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