मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा पूजा

  • विधिपूर्वक मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा करवाने में 3 दिन, 5 दिन या अधिकतम 7 दिन का समय लगता है, जिसमें नित्य 5 घंटे की पूजा होती है l

भगवान की मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा क्यों की जाती है ?

किसी भी मंदिर के निर्माण के बाद सबसे पहले उनमें स्थापित होने वाले देवी-देवताओं की मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। पूरे नियमानुसार इस पूजन को किया जाता है। प्राण प्रतिष्ठा करने में 3 से 5 दिन का समय लगता है।
ऐसा माना जाता है कि प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान प्रतिमाओं को जागृत करने के लिए किया जाता है। कहा जाता है कि प्राण-प्रतिष्ठा से पत्थर की मूर्तियों में प्राण तो नहीं आते, किन्तु उसके जागृत होने, सिद्ध होने का अनुभव किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को कई विद्वानों, पंडितों तथा आचार्यों द्वारा किया जाता है।
जिस स्थान पर मूर्ति को स्थापित किया जाता है वहां पर ज़मीन में सोना, चाँदी, मुद्रा, अन्न आदि को रखकर मूर्ति के लिए एक पाट बनाया जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा किए जाने वाले स्थान पर वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और ध्वनियों का नाद किया जाता है। इस दौरान भगवान की मूर्तियों का कई प्रकार से अभिषेक किया जाता है। कहा जाता है कि जब मूर्तियों में मंत्रों की शक्ति से प्राण-प्रतिष्ठा होती है, तो उनमें देवता वास करते हैं, जो भक्तों के लिए बहुत फलदायी होता है ।
यह वास्तु आधारित भी होता है। मूर्ति की स्थापना जिस स्थान पर की जाती है, मंत्रों द्वारा उस स्थान से नकारात्मक प्रभाव खत्म हो जाता है और सकारात्मक प्रभाव जागृत होता है। सकारात्मक ऊर्जा से वह जगह पवित्र हो जाती है। मंदिर में जिस शांति का अनुभव होता है, कहा जाता है वह वैदिक मंत्रों द्वारा ही होता है।
ऐसा नहीं है कि प्राण-प्रतिष्ठा सिर्फ मंदिरों में की जाती है, बल्कि लोग अपने घर के मंदिरों में भी प्राण-प्रतिष्ठा कराते हैं। घर के पूजाघर में कोई भी मूर्ति स्थापित करने से पहले मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कराई जाती है। माना जाता है जिस घर में प्राण-प्रतिष्ठा होती है, उस घर में भगवान साक्षात निवास करते हैं।

मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा हेतु अधिवास व्यवस्था

अन्नाधिवास (विभिन्न प्रकार के अनाज)
जलाधिवास (बड़े से पात्र की व्यवस्था)
मिष्ठानाधिवास (विभिन्न प्रकार के मिष्ठान)
फलाधिवास (विभिन्न प्रकार के  फल)
पुष्पाधिवास (विभिन्न प्रकार के पुष्प)
शैय्याधिवास (गद्दा, रजाई, चादर, तकिया, तखत या फोल्डिंग)

प्राण-प्रतिष्ठा पूजा विधि और मंत्र...

प्राण-प्रतिष्ठा हमेशा शुक्ल पक्ष के मंगलवार को ही करें अथवा स्थिर लग्न और शुभ नक्षत्र में करें। इस बात का ध्यान रहे कि राहुकाल में प्राण-प्रतिष्ठा वर्जित है।

सबसे पहले भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं। अगर पंचामृत नहीं है तो साफ जल, गंगाजल या दूध, दही से स्नान करा सकते हैं। स्नान कराने के बाद उन्हें वस्त्र पहनाएं। अब प्रतिमा पर फूल, फल, धूप, नैवेद्य, चंदन, दीप, मिठाई, अक्षत आदि अर्पित करें। तत्पश्चात् आरती करें। इसके बाद अपने दायें हाथ में साफ जल लेकर इन मंत्रों का उच्चारण करें-

‘अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वराः ऋषय: ऋग्यजु सामानि छन्दांसि क्रियामय वपु: प्राणाख्या देवता. आं बीजं ह्रीं शक्तिः क्रौं कीलकम् अस्मिन (जिन भगवान की मूर्ती स्थापित करनी है उनका नाम) यंत्रे प्राण प्रतिष्ठापने विनियोग।’

उच्चारण के बाद जल को भूमि पर गिरा दें।

धन्यवाद

प्रेम से बोले लक्ष्मी नारायण भगवान की जय।

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