भूमि (नींव) पूजन

"भूमि पूजन का महत्‍व"

हिंदू धर्मग्रंथों में धरती को मां का दर्जा दिया गया है। धरती हमारे लिए अनेक सुविधाओं का स्रोत है। धरती को सम्‍मान देने हेतु शास्‍त्रों में भूमि पर किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उसके पूजन का विधान है। यदि किसी भूमि पर पूर्व समय में कोई गलत कार्य किया गया हो तो उस भूमि को खरीदने वाले व्‍यक्‍ति को भूमि पूजन अवश्य करवाना चाहिए। ऐसा करने से उस भूमि की अपवित्रता दूर हो जाती है। भूमि पूजन से भविष्‍य में आने वाली बाधाओं से भी मुक्‍ति मिलती है।

जब भी कोई नई भूमि खरीदी जाए अथवा उस पर किसी शुभ कार्य का आरंभ किया जाए, तो उस समय भूमि का पूजन करवाना आवश्‍यक होता है। माना जाता है, कि भूमि पूजन के प्रभाव से भूमि पर किसी प्रकार का दोष अथवा कोई नकारात्‍मक ऊर्जा हो तो उसका नाश हो जाता है।

भूमि पूजन से जमीन को पवित्र किया जाता है। यदि उस स्थान पर पूर्व में कोई गलत काम हुआ हो तो भूमि पूजन से उस जमीन को फिर से पवित्र किया जाता है। मान्यता है कि भूमि पूजन करवाने से निर्माण कार्य सुचारु रूप से पूरा होता है तथा निर्माण कार्य के समय या उसके पश्चात् आने वाली किसी भी प्रकार की परेशानी से मुक्ति मिलती है।

"भूमि पूजन ना करवाने से बनी रहती है नकारात्‍मक ऊर्जा।"

भूमि पूजन न कराने से उस स्थान से जुड़ी नकारात्‍मक ऊर्जा बनी रहती है। वह आपके जीवन में क्‍लेश, नकारात्‍मकता, हानि और दुःख का कारक बनती है। भूमि पूजन का विधान तो देवताओं द्वारा भी मान्‍य है। अत: कोई भी नई जमीन खरीदने के बाद उसका पूजन अवश्य करवाएं l

"नींव की खुदाई निम्न प्रकार से करवाएं।"

नींव की खुदाई में पूजन एवं दिशा का ज्ञान बहुत आवश्यक है। भूमि पूजन के उपरांत नींव की खुदाई ईशान कोण से ही प्रारंभ करवाएं। ईशान के बाद आग्नेय कोण की खुदाई करवाएं। आग्नेय के बाद वायव्य कोण, तथा वायव्य के बाद नैऋत्य कोण की खुदाई करवाएं। कोणों की खुदाई के बाद दिशा की खुदाई करवाएं। पूर्व, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण इसी क्रम में खुदाई करवाएं।

"नींव की भराई निम्न प्रकार से करवाएं।"

नींव की भराई, नींव की खुदाई के विपरीत क्रम में करवाएं। सबसे पहले नैऋत्य कोण की भराई करवाएं। तत्पश्चात् वायव्य कोण, आग्नेय कोण तथा ईशान कोण की भराई करवाएं। अब दिशाओं में नींव की भराई करवाएं। सबसे पहले दक्षिण दिशा में भराई करवाएं। इसके उपरांत पश्चिम, उत्तर व पूर्व में क्रम से भराई करवाएं।

"नींव पूजन में कलश स्थापना"

नींव पूजन में एक छोटे कछुए के ऊपर चांदी या तांबे का कलश स्थापित किया जाना चाहिए। कलश के अंदर चांदी के सर्प का जोड़ा, लोहे की चार कीलें, हल्दी की पांच गांठें, पान के 11 पत्ते, तुलसी की 35 पत्तियां, मिट्टी के11 दीपक, छोटे आकार के पांच औजार, सिक्के, आटे की पंजीरी, फल, नारियल, गुड़, पांच चौकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, राम-नाम पुस्तिका, पंच रत्न तथा पंच धातु रखना चाहिए। समस्त सामग्री को कलश में रखकर कलश का मुख लाल कपड़े से बांधकर नींव में स्थापित करना चाहिए।

"मकान की नींव की खुदाई के समय इन बातों का रखें ध्यान।"

भारतीय समाज में अनेकों शास्त्र पाये जाते हैं, इनमें से एक शास्त्र है ‘वास्तु शास्त्र’, जिसका प्रयोग प्राचीन समय से ही किया जाता रहा है। वास्तु शास्त्र का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व होता है। जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रोग के प्रविष्ट करने का मुख्य मार्ग मुख होता है, उसी प्रकार किसी भी प्रकार के भवन निर्माण में वास्तु शास्त्र का अत्यधिक महत्त्व होता है। यदि वास्तु के नियमों का पालन किया जाये तो जीवन सुखमय हो जाता है l

वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन निर्माण कराने के साथ-साथ घर की वस्तुओं के रखरखाव में भी वास्तुशास्त्र का बड़ा महत्व है।  जब भी आप घर बनाए तो वास्तु के नियमों का पालन करें, जिससे घर में सुख, शांति तथा सम्रद्धि बनीं रहे। सुख, शांति तथा समृद्धि हेतु निर्माण के पूर्व वास्तुदेव का पूजन करना चाहिए तथा निर्माण के पश्चात् गृह-प्रवेश के शुभ अवसर पर वास्तु-शांति, होम इत्यादि किसी योग्य एवं अनुभवी ब्राह्मण, गुरु अथवा पुरोहित द्वारा अवश्य करवाना चाहिए।

ऐसा माना जाता है, कि धरती के नीचे पाताल लोक है जिसके स्वामी शेषनाग हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद में लिखा है, कि पृथ्वी के नीचे पाताललोक है, और इसके स्वामी शेषनाग हैं। इसीलिए कभी भी, किसी भी स्थान पर नींव पूजन-भूमि पूजन करते समय चांदी के नाग का जोड़ा रखा जाता है l

"घर की नींव रखने से पहले इन बातों का रखें ध्यान।"

वास्तु शांति के लिए अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापना व गृह प्रवेश आदि अवसरों पर वास्तु देव की पूजा का विधान है। ध्यान रखें यह पूजन किसी शुभ दिन या फिर रवि पुष्य योग में ही कराना चाहिए।

धन्यवाद

प्रेम से बोले वास्तु पुरुष भगवान की जय।

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