केतु जप एवं पूजन
- विधिपूर्वक केतु जप का पूजन सम्पन्न करवाने में 3 दिन व अधिकतम 5 दिन लगता हैं।
"केतु ग्रह की पौराणिक कथा"
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय राहु नामक एक असुर ने धोखे से अमृत पान कर लिया था। किन्तु जैसे ही उसने अमृत पान किया, सूर्य एवं चंद्र ने उसे पहचान लिया तथा भगवान विष्णु को सूचित कर दिया। इससे पहले कि अमृत उसके गले से नीचे उतरता, विष्णु जी ने उसका गला सुदर्शन चक्र से काट कर अलग कर दिया। उसका यह सिर राहु ग्रह के रूप में अमर हो गया, तथा धड़ केतु के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
"केतु निम्नलिखित विषयों का कारक ग्रह है "
केतु सामान्यतः :-
मोक्ष, रुकावट, खुजली, गुप्त रोग, गुप्त ज्ञान, जादु, अंतर्दृष्टि, वैराग्य, तर्क, बुद्धि, ज्ञान, विक्षोभ तथा अन्य मानसिक विकार इत्यादि का कारक ग्रह है। केतु का परिधान रंग-बिरंगा होता है। तथा स्वभाव से ही यह एक क्रूर ग्रह है।
"जन्मकुंडली में केतु का महत्व"
जन्मकुंडली में केतु अशुभ या पापी ग्रह के रूप में स्थित है, इसे छाया ग्रह की संज्ञा दी गई है। किन्तु छाया ग्रह होते हुए भी जन्मकुंडली में केतु ग्रह आध्यात्मिक ज्ञान तथा मुक्ति हेतु अपना विशेष प्रभाव बनाये रखता है। यह ग्रह हमेशा अशुभ फल नही देता। यह जातक के अंदर विध्यमान अन्तःज्ञान को जागृत करता है। केतु हानिकारक और लाभकारी दोनों तरह के प्रभाव देने में सक्षम होता है।
"केतु और स्वास्थ"
केतु ग्रह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अच्छा नहीं है। अपनी दशा अन्तर्दशा में यह किसी न किसी रूप में बीमारी अवश्य देता है। यह शरीर में ताप उत्पन्न करता है तथा मानसिक कष्ट देता है। ज्यादा भाग-दौर के कारण शारीरिक पीड़ा भी देता है।
"केतु ग्रह का विभिन्न भाव में फल"
केतु ग्रह शुभ तथा अशुभ दोनों फल देता है। केतु ग्रह यदि अनुकूल स्थिति में है, तो जातक को आध्यात्मिक गुरु बना देता है। यह व्यक्ति को इस क्षेत्र में मान-सम्मान भी दिलाता है। यदि केतु जन्मकुंडली में शुभ स्थिति में है, तो यह जातक की मुक्ति या ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा को पूरा करने की शक्ति रखता है, किन्तु यदि केतु प्रतिकूल है, तो व्यक्ति की बुद्धि तक भ्रष्ट कर देता है ।
यह अपनी महादशा अथवा अन्तर्दशा काल में जातक योग, आध्यात्म, पौराणिक ज्ञान वृद्धि की खोज में भटकता है। तथा अपनी दशा में वर्षों से चली आ रही समस्या का भी हल करने में सक्षम होता है।
"केतु ग्रह की शांति हेतु"
केतु ग्रह की शुभता हेतु प्रस्तुत हैं निम्नलिखित मंत्र एवं उपाय …
एकाक्षरी बीज मंत्र- ‘ॐ कें केतवे नम:।’
तांत्रिक मंत्र- ‘ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:।’
जप संख्या- 17,000 (17 हजार)।
(कलियुग में 4 गुना जाप एवं दशांश हवन का विधान है।)
दान सामग्री- काला वस्त्र, काले तिल, लहसुनिया, कंबल, सुगंधित तेल, उड़द, कालीमिर्च, सप्तधान्य, लोहा, छाता।
(उक्त सामग्री को वस्त्र में बांधकर उसकी पोटली बनाएं, तत्पश्चात उसे मंदिर में अर्पण करें अथवा बहते जल में प्रवाहित करें।)
दान का समय- रात्रि।
हवन हेतु समिधा- कुशा।
औषधि स्नान- रक्त चंदन मिश्रित जल से।
"अशुभ प्रभाव कम करने हेतु अन्य उपयोगी उपाय"
1) काले या चितकबरे कुत्ते को दूध-रोटी खिलाएं।
2) पक्षियों को 7 प्रकार का अनाज चुगने के लिए डालें।
3) बुधवार को प्याज व लहसुन बहते जल में प्रवाहित करें।
4) 5 कील, चूने के 5 पत्थर, काले-सफेद रंग मिश्रित वस्त्र में बांध अपने ऊपर से उतारकर बहते जल में प्रवाहित करें।
5) भिखारियों को कंबल दान करें।
6) बकरा/ बकरी दान करें।
7) केतु यंत्र को अष्टधातु के पत्र पर उत्कीर्ण करवाकर नित्य उसकी पूजा करें।
धन्यवाद
नवग्रह देवता की कृपा आप पर सदैव बनी रहे l।
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